Wednesday, October 29, 2008

Clarity on Kashay

Date of Swadhyaya:10/26/08
Chapter No:6
Sutra No:5

While discussing one of the KRIYA related to CHARITRA MOHNIYA KARMA, there was a profound fact about KASHAY, that was not discussed in detail. Thought to mention it here.

There are 4 types of KASHAYA - Anantanumandhi, Apratyakyan varaniya etc. Each type has various Raag/Dwesh flavors such as KRODH, MAAN, MAYA, and LOBH.

Interestingly, within Anantanumandhi kashyaya, there could be lots of Good Parinam and lots of bad parinam. For example, someone could donate lots of money for the charity, someone can protect/save very small insects during his commute, someone can speak HIT/MIT/PRIYA VACHAN only etc. One other hand, one could be very angry and kill someone etc. This SUBH/ASUBH PARINAM does not define the Anantanumandhi kashyaya.

The Anantanumandhi kashaya can be defined as the kashyay that blocks Samyakatva. Therefore, one needs to be clear about Samyakatva for better understanding this Kashay. There are good notes in a text book, SAMYAKGYAN CHANDRIKA, chapter KASHAY MARGANA.

Similarly, within Apratyakyan varaniya kashaya there could be lots of good thoughts and bad thoughts. However, the Apratyakyan varaniya kashay is mainly blocking the SHRAVAK VRAT. i.e. One who cannot perform the SHRAVAK VRAT is due to this type of KASHAY.

We can further discuss in our next class with the text book reference.

Wednesday, October 15, 2008

तत्वार्थ सूत्र अध्याय 6 स्वाध्याय (in Hindi)

तत्वार्थ सूत्र अध्याय 6 स्वाध्याय (सर्वार्थ सिद्धि, राज वार्तिक और सम्याक्ग्यान्चंद्रिका.)

द्रव्य योग : आत्मा प्रदेश का संकोच, विस्तार या परिस्पंदन

भाव योग: आत्मा प्रदेश मे करमो को ग्राहम करने की सकती

काया वचन और मन की क्रिया(कर्म) से योग होता हे


यहाँ योग का मतलब योग आसन (रामदेव जी) से नही है पर आत्मा के प्रदेशो में हलन चलन से है जो

कर्मो को कर्मान वरगना में परिवर्तित कर देती है सवाल यह होता है की किस परकार का स्पंदन? शास्त्रों के द्वारा सम्मत कुछ स्पंदन की कुछ परिब्शाये

हालन-चलन
संकोच-विस्तार-यह संकोच-विस्तार शरीर मैं कई परकार से होता है
फेफडे मैं संकोच-विस्तार
दिल मैं संकोच-विस्तार
गुर्दों मैं संकोच-विस्तार
रक्त धमनिका मैं संकोच-विस्तार जिसके रक्त द्वारा प्रवहित हो सके
हडडीयों मैं धमनिका मैं संकोच-विस्तार
संकोच-विस्तार किस तरफ़ इशारा करता है उदहारण के लिए एक बी साइकिल और एयर पम्प लेते है एक व्यक्ति एयर पम्प के ट्यूब को साइकिल के tire मैं जुड़ देता है और वह पम्प का संकोच-विस्तार करता है और यह विधि बाहर से हवा लेती है और साइकिल के ट्यूब मैं पम्प भर देती है तो यहाँ पर बाहर से हवा के परमाणु अंदर जाने के प्रक्रिया संकोच-विस्तार के कारन ही होती है उसी तरह फेफडे oxygen को बाहर से शरीर के अंदर पम्प कर देते है और भी शरीर की प्रक्रिया इसी हरः होती है शरीर के विभिन् अंगों के स्पंदन से, आत्मा के स्पंदन/संकोच-विस्तार से, ये स्पंदन/संकोच-विस्तार कर्मो परमाणु को जूड़ता है अगर आत्मा अच्छा विचार करती है तो अच्छा कर्म जूड़ता है और बुरा विचार करती है तो बुरा कर्म जूड़ता है

य़ोग के भेद

4 मनो योग, 4 वचन योग और 7 के योग होते हे |

मानो योग - 1) सत्य 2) असत्या 3) उभय 4) अनुभय
वचन योग - 1) सत्या 2) असत्या 3) उभय 4) अनुभय


काया योग कितने परकार के है :- जिस परकार का शरीर है उसी परकार का योग है


काया योग कितने परकार के है :- जिस परकार का शरीर है उसी परकार का योग है

कार्मन योग - जब जीव एक शरीर से दुसरे शरीर हैं जाता है
औदरिक योग - पर्याप्त औदरिक शरीर के निमित से जो योग होता हे
औदरिक मिश्र योग -- अपर्याप्त औदरिक शाऱीऱ के निमित से जो योग होता हे
वक्रियिक योग - पर्याप्त वक्रियिक शाऱीऱ के निमित शे जो योग होता हे नरकी और देव का शरीर वक्रियिक होता है
वक्रियिक मिश्र - अपर्याप्त वक्रियिक शाऱीऱ के निमित से जो योग होता हे
आहारक योग - पर्याप्त आहारक शाऱीऱ के निमित से जो योग होता हे- WHEN MUNI HAVE SOME DOUBTS, THEY FORM AHARAK SARIR TO TRAVEL TO THE PLACE WHERE TIRTHANKAR BHAGAVAN IS THERE AND RESOLVES HIS DOUBT.
आहारक मिश्र योग - APARYAPT आहारक SARIR KE NIMIT SE JO YOG HOTA HE

कर्म आत्मा के साथ हमेशा से है ये लगता है पर अगर कर्म आत्मा के साथ हमेशा से होते तो वे कभी भी नही टूटते. इसलिए कर्म आत्मा के साथ हमेशा से नही है- इनका संयोग आत्मा के स्पंदन/संकोच-विस्तार से है और स्पंदन/संकोच-विस्तार में किसी परकार के नियमितता जुड़ी है और यह नियमितता समय के साथ बदलती रहती है और जब यह अपनी पूर्णता पर पहुचती है तब अपना असर देते है और फिर आत्मा से खिर जाते है तो ऐसा लगता है की कर्म आत्मा में एक तरह स्पंदन जेसे रहते है सिद्धों को योग नही होता उनके आत्मा के परदेशों का कितने परकार के योग है

यह जानने योग्य है की विग्रह गति, आत्मा को सिर्फ़ कर्मन योग होता है क्योकि आत्मा को केवल विग्रह कार्मिक शरीर हे है शरीर विग्रह गति मैं है. और जब आत्मा का औदरिक शरीर है तो औदरिक योग इसके बावजूद की शरीर कार्मिक है या औदरिक. एसा लगता है की औदरिक शरीर का ही कारन स्पन्दन होता है कार्मिक शरीर के कारन नही.

और देखते है की शरीर की पर्याप्ति से पहले मिश्र योग होता है - इसका मतलब जब तक बॉडी पूरी तरह बन नही जाती तब तक ये अवस्था मिश्र योग कहलाती है

योग और आस्रव मैं अंतर:-

योग- मन वचन काया के निमित्त से आत्मा के प्रदेशों का स्पंदन योग है

आस्रव-

योग के निमित से आत्मा मे करमो का आगमन होता हे - वो अश्राव हे |

(karman vargana becomes karma)


गुंस्थान 10 तक संप्रायिक अश्राव होता हे | मोहनिया / ज्ञानवरणीय आदि का बंध होता हे |
गुंस्थान 11 के बाद इर्यपथ अश्राव होता हे | काशय नही हे | केवल सता वेदनिया का ही बंध होता हे |


योग के निमित से अश्राव हो भी सकता हे और नही भी हो सकता | नहितो केवली समुद्घाट के समय होनेवाले दंड कपाट प्रत्र और लोकपूर्ण योग भी अश्राव हो जाएँगे ! लेकिन वहा आश्रव नही हे |
बंध- जीव और कर्मो का एक जगह मैं स्तित रहने को बंध कहते है

योग एक पानी की टंकी मैं रंग रहित पानी की तःरह है आस्रव उसी पानी की टंकी मैं (शुभ,अशुभ) रंग सहित पानी की तःरह है
योग से कर्म बंध नही है पर आस्रव से बंध हो जाता है (१ या अधिक समय स्थिति वाला बन्ध)
5 वर्गना (समान गुण वाले पुडागल का पिंड)
* अहारक
* भाषा
* मानो
* तेजस
* करमन

5 प्रकार के सरीर (बॉडी) (सरीर नाम कर्मा के नाम भी यह हे जिसके निमित से सरीर की रचना होती हे)
* औदरिक
* वयक्रियक
* आहारक
* तेजस
* करमन

Tuesday, October 7, 2008

Introduction

We will be blogging summaries of Tatvarthsutra here