Wednesday, March 18, 2009

सप्तम अध्याय

Date of Swadhyaya:
Attendees:
Summary Prepared by:
Chapter No:7
Sutra No:1 to 6
Recorded lecture:
Summary: <सप्तम अध्याय


व्रत - हिंसा अदि ५ हिंसा झूट चोरी कुशील परिग्रह पाप का बुधिपुर्वक त्याग करने को व्रत कहते है
व्रत से किया लाभ है - इंद्रियों पर अनुशाशन होता है, आत्मा के सच्चे सुख का आनंद प्राप्त होता है, संकट के काल मैं(बीमारी, रोग, या मृत्यु के समय) समता धारण करना अस्सं हो जाता है./ व्रत की भावना इंद्रियों से सुख की तलाश को ख़त्म कर देती है व्रत आत्मा की शक्ति तो बढ़ता है और शरीर से ममत्व भावः को कम करता है व्रत से शुभ पुण्य तो प्राप्ती होती है और शुद्ध भावः प्राप्त करने में भी बल मिलता है


‘व्रत के कितने भेद है – अणुव्रत- ५ अणुव्रत एकदेश त्याग करने को कहते है श्रावक के लिए है

महाव्रत- ५ महाव्रत पूर्णतया त्याग करने को कहते है मुनिराज के लिए है



५ व्रत की ५ भावना है

प्रशस्त - देव गुरु धर्म के कारन होने वाला क्रोध मान माया लोभ प्रशस्त कहलाता है वह शुभ आस्रव का कारन है

अहिंसा व्रत के ५ भावना:

वचन गुप्ती - अपने वचनों से किसे को हिंसा पूर्वक वचन नहीं कहना. हित मित प्रिय वचन का ही उपयोग करना. कम बोलना, जरुरत से जियादा नहीं बोलना, कठोर और निंदा वाले वचन नहीं बोलना उससे दुसरे के प्रणों का घात होता है हिंसा का दोष लगता है
Best combination - हित मित प्रिय वचन
Good - हित मित अप्रिय
Fair- हित अप्रिय
Bad - अहित अप्रिय

मनो गुप्ती- मन की चंचल प्रवति को रोकना ( आत्मा और शरीर अलग अलग है इसका विचार करना, ध्यान लगाना आदि ) मन में बुरा सोचने से अपने प्रणों का घात होता है अपने ५ इंद्रिय मन आयु स्वाश बल , १० प्रणों का घात करने से भी हिंसा का दोष लगता है

इर्यासमिति - चलते समय ४ हाथ आगे की जमीन देख कर चलना. (भावना - हमरे द्वारा किसे भी जीव का घात न हो जाय (एकेंद्रिया, २ इंद्रिय असावधानी के कारन जीव का घात न भी हो पर प्रमाद का दोष लगता है ) दिनभर के कार्य में सावधानी रखना और भावना रखना की किसी की हिंसा नहीं हो जाय. जेसे की हम अपना बचाव करता है किसी उद्देश्य के कारन ही गमन करना.

आदान निक्षेपण समिति - जीव रक्षा के भाव से किसे वस्तु को उठाते रखते समय सावधानी रखना. . (भावना - हमरे द्वारा किसे भी जीव का घात न हो जाय (एकेंद्रिया, २ इंद्रिय असावधानी के कारन जीव का घात न भी हो पर प्रमाद का दोष लगता है )

आलोकित पान भोजन- रात्रि में भोजन न बनाना और न खाना and सूर्य के प्रकाश मे बना हुआ भोजन भी रात्रि में न खाना. सूर्य के प्रकाश मे ही भोजन करना/




कोर्ध - कोर्ध में बोले वचन असत्य हैं चाहे वह सत्य ही किया न हों अगर वह क्रोघ , घर्णा से बोले वचन असत्य कहलाते है

लोभ - लोभ से बोने सत्य वचन भी असत्य होते है भय - भय में में बोले वचन असत्य हैं
हास्य - हास्य से बोले वचन भी असत्य हैं
अनुवीची भाषण - शस्त्रों से सम्मत और निर्दोष वचन ही बोले





शुन्यगार - पर्वत की गुफा और निर्जन स्थान पर रहना

वीमोचितावास - किसे के left out गए स्थान पैर रहना
परोप्रोधाकरण - किसी और को हटा कर उसके स्थान पर रहना or अनावश्यक स्थान को घेरना , अपने परमाण से ज्यादा things लेना चोरी का दोष लगता है
भक्ष्यसुधि - भक्ष्यसुधि - मुनि राज को अपने नियम के अनुसार भिक्षा लेना

विसंवाद - सधर्मी भाइयों से झगडा करना
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